बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

तंत्र मंत्र का परिचय

यन्त्र मन्त्र तन्त्र
भारतीय समाज में यन्त्र मन्त्र और तन्त्र के मामले में बहुत बुरी भ्रान्तियां फ़ैल चुकी है।मीडिया सीधे रूप से किसी मन्त्र का जाप करने वाले या किसी प्रकार से वैदिक मन्त्र आदि का जाप करने वाले को तान्त्रिक उपाधि देकर उसकी मन चाही हँसी उडवाने से नही चूकता है.अगर इन तीनो वैदिक शब्दों की पूरी तरह से व्याख्या की जावे तो जो सामने अर्थ आता है वह अनर्थ के रूप में नही लिया जावे.कितने ही लोगो ने इस प्रकार की धारणाओं के प्रति अपनी आस्था वैदिक या धर्म से निकल कर फ़ूहडपन की तरफ़ ले जाने की कोशिश की है,लेकिन इसका आस्तित्व आज तक बरकारा है.

यन्त्र की परिभाषा
यन्त्र वह नाम है जिसका उद्देश्य संसार के जितने भी जीव जन्तु स्त्री पुरुष हैं उनकी सहायता के लिये किया जाये,वह सहायता पैदा करने से मारने तक के कामो मे ली जा सकती है.पृथ्वी खुद एक यन्त्र है,जमीन की सहायता रहने के लिये और घर बनाकर निवास करने से लेकर चलने और अपना फ़ैलाव करने तक के काम आती है,जो भी जमीन से पैदा होता है,उसी से अपना उदर पोषण भी किया जाता है,जो भूख मिटाये वह अन्न भी यन्त्र ही कहा जायेगा,जो प्यास बुझाये वह पानी भी यन्त्र कहा जायेगा,जिससे शरीर की अग्नि की शान्ति हो,वह जीवन साथी भी एक यन्त्र ही कहलायेगा,लेकिन केवल चार रेखायें बनाकर केवल एक ताम्र पत्र और स्वर्ण पत्र को ही यन्त्र नही कहा जा सकता है,वैदिक यन्त्र का उद्देश्य केवल कुछ लाइनो और त्रिभुज चतुर्भुज और बिन्दु के द्वारा स्थिति विषेष की तरफ़ ध्यान देकर उसे समझने के द्वारा ही माना जा सकता है.हिन्दी भाषा के सभी अक्षर भी यन्त्र की भांति काम करते है,अगर पट्टी,पत्थर या किसी भी धातु पर किसी अक्षर को लिख दिया जायेगा तो वह भी अपने में उसी अक्षर का बोध करवायेगा.कारण जो गति पूर्व से नियुक्त की गयी है,उससे परे कुछ भी नही कहा जा सकता है,हवाई जहाज भी यन्त्र है तो एक साइकिल भी यन्त्र का रूप माना जा सकता है.

मन्त्र की परिभाषा
ज्ञान नाम मन्त्र को माना जाता है,मन्त्र से ही मन्त्रणा शब्द का विकास हुआ है.यन्त्र भी बिना मन्त्र के बेकार ही है,कार तो है लेकिन उसे चलाने और रखरखाव का ज्ञान नही है तो वह कार भी बेकार मानी जा सकती है,कार तभी सफ़ल है जब उसे चलाने से लेकर समय पर प्रयोग करने का पूरा ज्ञान पता हो,संसार के सभी शब्द मन्त्र है,रोटी खाने के लिये जब रसोइये को रोटी बनाने का मन्त्र पता नही होगा तो वह रोटी नही बना सकता है,खाने बाले को खाने का ज्ञान नही होगा तो वह खा भी नही स्कता.गन्ना बहुत मीठा होता है,लेकिन अगर उसे चूसने का ज्ञान नही होगा तो वह अपनी लकडियों से गले को फ़ाड देगा.आम को खाने के लिये छिलका सहित या गुठली सहित खा लिया जाये तो वह अर्थ की जगह अनर्थ ही करेगा.किसी भी वस्तु,व्यक्ति,स्थान के बारे मे मालुम करने के लिये उसका मन्त्र जानना भी जरूरी है,डाक्टर अगर शब्द को पढने और दवाइयों को प्रयोग करने का मन्त्र नही जानता है तो वह किसी काम का डाक्टर नही है.डाक्टरी पढाई और डिग्री मन्त्र से पूर्णता का भान ही कराती है,मीडिया वाले भी अगर कवरेज का ज्ञान नही रखते है,शब्दों के जाल बनाने का ज्ञान नही रखते,या जन्रलिस्ट की पढाई के द्वारा सफ़ल मीडिया कर्मी का मन्त्र नही जाना है तो वह किस प्रकार से कवरेज को टीवी पर दिखा सकता है.

तन्त्र की परिभाषा
कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है,यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है,रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है,अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है,यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है,तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये,किसी भी वस्तु,व्यक्ति,स्थान,और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है,तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है,शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है,और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है,वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है,जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता,केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है,उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है,जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है,कि वे उसे जानते है,जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा,मगर अधिक समय तक चलेगा,और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा,उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है,मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी,और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा,अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते,मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.